शिलाविन्यास


मैं चाहती थी मै अपना घर स्वयं बनाऊ। और यह अवसर मुझे २०१२ में मिला । कभी सोची नहीं थी मै इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा पायुगी पर समय कहे या भाग्य का लेखा यह अवसर मेरे जीवन में आ ही गया था ।गृह निर्माण और जमीन से सम्बंधित विषयो पर मेरी रूचि पहले से ही रही थी । चाहती थी मै आर्किटेक्ट  बनु या गृह सज्जा पर कोई पढाई ही कर लू पर यह संभव नहीं हो पाया था पर हाँ ज्योतिष विषय पर कार्य करते हुए वास्तु से सम्बंधित काफी जानकारी मुझे था वही मैंने इस निर्माण में लागु करने का प्रयास किया है ।
27 वर्ग फ़ीट के इस जगह का मिलना एक संयोग मात्र था ।प्लाट ईशानमुखी होने के कारण समझ नहीं  आ रहा था की मकान का निर्माण किस दिशा से आरम्भ  करुँगी  ?

गृह निर्माण के विषय में जानना और उसको मूर्त रूप देना सहज नहीं है ।निर्माण से पहले  भूखंड का शिलाविन्यास ,नीव पूजन एवं शुभ मुहूर्त का चयन ये मै अन्य लोगो को बताती थी पर इस बार मुझे ये स्वयं के लिए लागू करना  था।पूर्व दिशा में उद्यान और ईशान में शिवजी  मंदिर होने के कारण भूमि का पूर्वी भाग वास्तु सम्मत था  । 



गृहारम्भ मुहूर्त ,शिलाविन्यास  और नीव पूजन के लिए निम्न बातो का 

ध्यान रखना अति आवश्यक होता है


१.शेषनाग की स्थिति
 
२.पृथ्वी की शयन अवस्था

३.घात चन्द्रमा

४. मास 

५.  तिथि 

६. दिन 

७. योग 

८. नक्षत्र 

९. लग्न 

वास्तु मुहूर्त सिद्धांत के आधार पर जिस दिशा में शेषनाग का वास माना जाता है उस दिशा से नीव की खुदाई आरम्भ नहीं करना चाहिए । शेषनाग के शिर पर खुदवाने से घर के मुखिया माता-पिता को कष्ट आता है । 
पीठ पर खुदवाने से रोग भय ,पीड़ा से घर में काफी कष्ट आने लगता है ।पूछ पर की गयी खोदाई कुल का नाश करती है अतः वास्तु के प्रथम सोपान में शिलाविन्यास की देख  समझ कर निर्धारित करना चाहिए 
शेषनाग का वास गृह निर्माण के आरम्भ दिवस  में सूर्य की राशि जान कर निर्धारित की जाती है  यदि शेषनाग का वास ईशान दिशा में है तो अग्निदिशा से शिलाविन्यास किया जाता है । ऐसे ही शेष नाग के वास की स्थिति को ज्ञात कर शिलाविन्यास की दिशा निर्धारित किया जाता है साथ ही उपरोक्त दिए सभी तथ्यों का पूर्ण अध्यन कर किये जाने वाले  निर्माण वास्तुसम्मत माने  जाते  है। जिसका निर्धारण मैंने अपने गृह निर्माण के दौरान किया  । 


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