शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

"Srinilyam"


"Srinilyam"


वास्तुकला और भवन निर्माण संबंधी विषयो में मेरी रूचि पहले से ही रही है |मै आर्किटेक्ट बनना चाहती थी पर ये संभव नहीं हो  सका  था पर वास्तु संबंधी विषयो में रूचि होने के कारण इसे सार्थक करने का जोखिम मैंने उठा ही लिया | ज्योतिष ज्ञान के विषय का एक अभिन्न अंग वास्तुशास्त्र भी है ,जो प्राचीन काल से भारत ही नहीं पुरे विश्व में निर्माण से सम्बंधित कलाकौसल में अपनी भूमिका बनाये रखता रहा है |भवनो के निर्माण उसके विन्यास परिवर्तनशील समय के साथ मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुसार अपना स्वरूप बदलता आया है |वर्तमान समय परिवर्तन का है वास्तुकला में विज्ञानं ने भी अपनी अहम भूमिका बना रखा है |ऐसे में  वास्तुकला (आर्किटेक्चर) की अपनी परिभाषा बहुत बदल चुकी है |लेकिन निर्माण की तकनिकी व्यवस्था कही न कही वास्तुशास्त्र की महत्ता से आज भी जुडी हुई है |
" श्री निलयम "अर्थात "श्री हरी का घर "बचपन से यह नाम मेरे मानस पटल पर अंकित हो चूका था |मेरा सपना था की जब भी मै अपना घर बनाउंगी तो घर का नाम "श्रीनिलयम "ही रखूगी |वर्तमान में यह सौभाग्य मुझे 2012 में  मिला |दक्षिण भारत और उत्तर भारत शैली से बना यह मेरा छोटा सा घर मेरी अब  तक के जीवन का सार ही है |आर्किटेक्ट तो नहीं बन पायी इसी बहाने भवन निर्माण की सभी जोखिम  वस्तुस्थितियों से परिचित  जरूर हो गयी |
यह संसार ईश्वर की बनाई अनुपम कृति है यहाँ जन्म से लेकर मृत्यु तक इंसान अपने आप को सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने देने  के लिए संघर्ष रत रहता है । मानव जीवन में सुख शांति ,समृद्धि और विकास का मुख्य 
 पर्याय उसका निवास स्थान  है जहा से वो अपने जीवन की दिनचर्या शुरू करता है ।यदि घर में सुख और शांति है तो वहा रहने वाले सभी लोग मानसिक शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए सबल रहेंगे। यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य किसी भव्य भवन के निर्माण तक निहित नहीं है । अमीर हो या गरीब निवास स्थान छोटा हो या बड़ा प्रत्येक मनुष्य को अपने घर में शांति और सुख बनाये रखना चाहिए ।क्योकि "वास्तु "का प्रथम सोपान लोगो की अपनी अच्छी या बुरी मानसिकता पर भी निर्भर होता है ।
जीवन में चार पुरुषार्थ की प्राप्ति  वास्तुशास्त्र से भी संभव है । ह्मारे धर्म शास्त्र में कहा गया है "धारियति  इति धर्मः "अर्थात जीवन में जो कुछ भी अच्छा है जो धारण करने योग्य है वही  धर्म है ।ओर धर्म के अनुसार अर्थ की प्राप्ति करना हमारा लक्ष है ।अर्थ की प्राप्ति के बाद अपनी कामनाओ  को पूर्ण करना हि काम  है और सब कुछ प्राप्त कर परमशान्ति को प्राप्त करना ही मोक्ष है ।और यही वह चार पुरुषार्थ है जिसे पूरा करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। वास्तु शास्त्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता दिलाने का एक महत्वपूर्ण आयाम ही है  । जिसका ज्ञान मानवजाति के लिए हमेशा लाभदायकरहा  है |


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